देवपुत्र: एक अनवरत यात्रा

‘देवपुत्र‘ बाल साहित्य जगत में सुस्थापित बाल मासिक पत्रिका है। यह अपने प्रकाशन के निरंतर पांचवें दशक में प्रवेश कर चुकी है। इस लम्बी अवधि में इस पत्रिका ने विकास के कई सोपान चढ़े, कीर्तिमान रचे, बालमन में अपनी पेठ बनाई। इसकी रोचक विकास यात्रा जानने योग्य है
जन्म एवं नामकरण
देवपुत्र का पहला अंक प्रकाशित हुआ वर्ष 1979 में तब इसका स्वरूप एक वार्षिक स्मारिका का ही था और यह विद्याभारती यानि सरस्वती शिशु मंदिर योजना के, म.प्र. के भगीरथ वरिष्ठ प्रचारक श्री रोशनलाल जी सक्सेना के संपादकत्व में ग्वालियर से प्रकाशित हुआ। उद्देश्य था कि पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त बच्चों को नैतिक एवं राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने वाले बाल साहित्य से परिचित करवाना ।
हम बच्चों को मानव पुत्रों से देवपुत्र बनाने के लिए प्रेरणा देंगे। वे देव संस्कृति कही जाने वाली भारतीय संस्कृति से ओत -प्रोत, संस्कारवान और देवभूमि भारत के प्रति अगाध श्रद्धा और द९ृ९ज्झझ निष्ठा रखने वाले बनेंगे,। ऐसी भावना से पत्रिका का नाम ‘देवपुत्र‘ किया गया। सरस्वती शिशु मंदिर योजनाः एक परिचय नामक, स्वनाम धन्य कार्यकत्र्ता -शिक्षाविद् श्री राणाप्रताप सिंह की पुस्तक में बालक को ‘देवपुत्र‘ बनाने की बात उल्लिखित हंै। जो उन्होंने स्वामी विवेकानंद द्वारा उद्धृत उपनिषद- वाक्य से ग्रहण किया है। ‘अमृतस्य पुत्राः का ही हिन्दी रूप है ‘देवपुत्र‘। यहाँ यह भी सुस्पष्ट करना समुचित होगा कि ‘देवपुत्र‘ यह संज्ञा ‘भारत-संतानों‘ के लिए है। इसमें लिंगभेद न करते हुए पुत्र- पुत्रियों सबके लिए यह संबोधन ग्रहण करना चाहिए।
वर्ष 1979 से 1982 तक मा. रोशनलाल जी के संपादन में म.प्र. के ग्वालियर से प्रकाशित ‘देवपुत्र ए. 3 के आकार में श्वेत -श्याम ही रहा। तत्पश्चात श्री सक्सेना ने इसका संपादकीय दायित्व ग्वालियर के ही एक और निष्ठावान कार्यकर्ता आदरणीय श्री विश्वनाथ जी मित्तल को सौंपा। पांच वर्ष वे भी इसे इसी कलेवर में निकालते रहे।
जुलाई 1979 अर्थात् देवपुत्र के नौवें वर्ष का पहला अंक डिमाई साइज में प्रकाशित हुआ। पुस्तकाकार स्वरूप में यह बच्चों को सहेजने में सुविधापूर्ण आकार था।
अपनी सुरुचिपूर्ण कथा- कहानी, प्रसंग एवं कविताएं -गीत, जानकारियाँ सब, भारतीय गौरव, इतिहास बोध एवं संस्कार परकता के कारण बच्चों को लुभाते थे। वर्ष 1982 से 1991 तक श्री विश्वनाथ जी मित्तल के संपादकत्व में देवपुत्र की प्रसार संख्या 16000 तक जा पहुंँची थी। तब इसका वार्षिक मूल्य 24.00 रुपये और एक अंक का मूल्य रखा गया था 2.50 रु.।
नूतन युग का आरंभ
इसके बाद का समय देवपुत्र के संदर्भ में एक युगान्तरकारी परिवर्तन लेकर आया। अक्टूबर 1991 में भोपाल में विराट प्रधानाचार्य,/प्राचार्य सम्मेलन हुआ। विद्याभारती के मार्गदर्शक मा. भाऊराव देवरस जी की प्रेरणा से मा. श्री लज्जाराम जी तोमर, राष्ट्रीय संगठन मंत्री - विद्याभारती और मा. दीनानाथ जी बत्रा, राष्ट्रीय मंत्री - विद्याभारती , प्रांत प्रचारक मा. शरद जी मेहरोत्रा जैसे अनेक वरिष्ठ शिक्षाविदों एवं कार्यकत्र्ताओं के बीच घोषणापूर्वक ‘देवपुत्र‘ का संपादन -दायित्व, अत्यंत अनुभवी एवं वरिष्ठ शिक्षाविद्, पत्रकार श्री कृष्णकुमार जी अष्ठाना को सोंपा गया। श्री अष्ठाना जी इसके पहले ‘स्वदेश‘ इन्दौर समाचार पत्र के संपादक एवं प्रबंध संपादक के दायित्वों को सम्हालते हुए यशस्विता अर्जित कर चुके थे।
इस सभा में देवपुत्र को केवल नए संपादक ही नहीं मिले इसका रंग रूप-आकार भी बदला। ए-4 साईज में आठ बहुरंगी पृष्ठों के साथ 52 पृष्ठीय देवपुत्र अबसे भोपाल से प्रकाशित होने लगा। व्यवस्थापकीय दायित्व रा.स्व. संघ एवं विद्याभारती के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री शांताराम शं. भवालकर को मिला। चूंकि श्री अष्ठाना इन्दौर मे ंनिवास करते थे अतः संपादकीय कार्य इन्दौर से होता और प्रेषण आदि का भोपाल से । लेकिन कुछ ही वर्ष में देवपुत्र पूरी तरह इन्दौर में ही आ गया। स्नेहनगर इन्दौर की ही एक कालोनी में किराए के मकान में श्री अष्ठाना जी और श्री भवालकर जी का स्नेह एवं साज-सम्हाल पाकर देवपुत्र के विकास को मानों पंख ही लग गए। वर्ष 1992 में इसकी सदस्यता में 7000 नए सदस्य जुड़ गए। वर्ष 1997 तक यह 55000 की संख्या में प्रतिमाह सारे देश में जाने लगा और एक सुपरिचित प्रतिष्ठित बाल पत्रिका बन गया। लेकिन इसी वर्ष अपने प्रथम व्यवस्थापक श्री शांताराम जी भवालकर के निधन का आघात भी इसे सहना पड़ा । अब तक देवपुत्र स्नेहनगर के किराए के कार्यालय से निकलकर संवादनगर के अपने भवन में आ चुका था।

विकास के पथ पर
‘देवपुत्र‘ अपनी विकासयात्रा के क्रांतिकारी परिवर्तनों के सोंपानों से गुजर रहा था। पाठ्य सामग्री की दृष्टि से देश के प्रख्यात लेखक लेखिकाओं की रचनाएं अब इस पत्रिका का आकर्षण बन रही थीं। अब देवपुत्र ने नियमित विविध सामग्रियों के साथ ही प्रतिवर्ष विशेषांकों के प्रकाशन का भी सूत्रपात किया। देवपुत्र के यह विशेषांक अपनी विशिष्ट सामग्री व रोचक प्रस्तुति के साथ पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय बन कर प्रसिद्ध हुए। जुलाई 2001 में प्रसार संख्या 1,00000 पहुंची तो जुलाई 2012 में यह 3,68925 आय एन एस से प्रमाणित हुई ।
इस श्रंखला में प्रथम विशेषांक ‘क्रांतिअंक ‘ के रूप में मई-जून 1996 में निकला। जनवरी 1997 के ‘ सुभाष अंक‘ में नेताजी सुभाषचन्द्र बसु के सम्बंध में बहुत विशिष्ट जानकारी व दुर्लभ चित्रावली प्रकाशित हुई जिसे आज भी पुराने पाठकों ने सहेज कर रखा है।
विशेषांकों का यह क्रम अनवरत चलता रहा वीरबालक अंक मई-जून 1997, वीर बालिका अंक मई-जून 1998, विज्ञान और वैज्ञानिक अंक अप्रैल-मई 1999, कारगिल अंक अगस्त 1999, प्रेरक प्रसंग अंक अपै्रल मई 2000, व संगणक शिक्षा अंक मई -जून 2001, बहुत प्रशंसित हुए। मई -जून 2002 में प्रकाशित विशेषांक ‘खेल अंक, आज भी अनेक विद्यालय खेल निर्देशिका के समान संग्रहित किए हुए हैं।
अप्रैल मई 2003 में एकांकी अंक, अप्रैल मई 2004 में गुजरात अंक, अक्टूबर 2004 में वनवासी जनजाति अंक अप्रैल 2005 में पंजाब अंक, सितम्बर 2005 में दिल्ली विशेषांक प्रकाशित हुए।
वर्ष 2006 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पू. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी का जन्मशताब्दी वर्ष था। देवपुत्र ने फरवरी 2006 में उनपर एक विशेषांक प्रस्तुत किया जिसका लोकार्पण तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री भेरोसिंह शेखावत ने दिल्ली में किया। इसी वर्ष अर्थात् मई-जून 2006 में समरसता अंक, अप्रैल मई 2007 में ‘बाल फिल्म व टी. वी. अंक‘ लोकप्रिय हुआ।
वर्ष 2007 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का 150 वां वर्ष था 1857 अंक में इस महान क्रांति पर विशेष सामग्री नाट्य रूप में प्रस्तुत की गई। साथ ही वर्ष भर इस सन्दर्भ में विशिष्ट जानकारियां प्रस्तुत की र्गइं।

वर्ष 2008 अगस्त में श्री लालकृष्ण आडवानी ने तत्कालीन उपप्रधानमंत्री के रूप में ‘अटल अंक‘ लोकार्पित किया। सितम्बर 2008 में मध्यप्रदेश अंक, अपै्रल 2009 में विज्ञान कथा अंक, अप्रैल 2010 में विलक्षण ‘संगीत अंक‘ प्रशंसनीय बने। अप्रैल 2011 माॅ अंक, मार्च 2012 नववर्षांक, प्रकाशित हुए।
अगस्त 2012 में प्रकाशित ‘गौरवशाली भारत अंक‘, की डा. विकास दवे द्वारा संयोजित संकलित सामग्री भूरि-भूरि प्रशंसा प्राप्त रही।
वर्ष 2013 स्वामी विवेकानंद जी का एक सौ पचासवां अर्थात सार्धशती वर्ष था। देवपुत्र के इतिहास में और विशेषांक की श्रंखला में अनन्य बन चुका ‘ विवेकानंद चित्रकथांक ‘ प.पू. सरसंघचालक डा. मोहनराव भागवत ने लोकार्पित किया। यह सितम्बर 2013 अंक देशभर में विशेष मांग के साथ दस लाख की संख्या में प्रसारित होकर एक कीर्तिमान रच गया।
जुलाई 2014 से देवपुत्र सम्पूर्ण बहुरंगी हो गया और इसकी विशेषांक श्रंखला भी निरंतर बढ़ती रही।
अप्रैल 2015 का ‘ गणितांक‘ एक विलक्षण प्रयोग था। अक्टूबर 2015 ‘राष्टबंधु रचना अंक‘ व अप्रैल 2016 ‘धरोहर अंक‘ भारतीय बाल साहित्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण सामग्री के साथ प्रस्तुत किए गए।
मार्च 2018 में भगिनी निवेदिता अंक , मार्च 2019 में ग्राम कथांक, वर्ष 2020 में शौर्य एवं बलिदान अंक प्रकाशित हुए।
वर्ष 2022 भारतीय स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव वर्ष था। स्वतंत्रता के पचहत्तर वर्ष पूर्ण होने पर लगभग एक शताब्दी के 75 बाल गीतकारों की 75 रचनाएं एक ही अंक में ‘राष्ट्रीय बाल गीतांक ‘ के रूप में प्रकाशित हुई। पू. सरसंघचालक डा. मोहनराव जी भागवत ने इसे उज्जैन में लोकार्पित किया। वर्ष 2023 के सितम्बर मास में बाल अहिल्या अंक भी रोचक चित्रात्मक शैली में प्रकाशित हुआ। जिसका लोकार्पण उ.प्र. के यशस्वती मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने किया।
जनवरी 2024 भारतीय इतिहास के परमोज्वल वर्ष के रूप में जाना जाता। इस वर्ष 22 जनवरी को श्री अयोध््यापुरी में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का वैश्विक प्रसिद्धि का अवसर था। देवपुत्र ने इस अवसर पर ‘अवधेश विशेषांक‘ के रूप में भगवान राम के पूर्वजों का कथात्मक परिचय कर अपनी आहुति डाली । इस अंक का लोकार्पण साध्वी ऋतंभरा जी ने किया। जून 2024 में ही छत्रपति शिवाजी के हिन्दवी स्वराज के 350 वर्ष पूर्ण होने पर छत्रपति शिवाजी अंक (एकांकी) प्रकाशित किया।
श्री कृष्णकुमार जी अष्ठाना ने देवपुत्र को नई उचाईया प्रदान करने में अनथक परिश्रम और विलक्षय सूझबूझ से कार्य किया।
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